बातें कुछ अनकहीं...कुछ अनसुनी सी....एक जरिया...जिसके माध्यम से मैं और आप संवाद को और बेहतर कर सकते हैं.. एक कोशिश, कुछ नया करने की... कुछ अलग करने की... ये ब्लाग उसी तरफ किया गया एक प्रयास है... आगे देखेंगे होता है क्या..!!!. प्रमोद पाण्डेय आजतक, दिल्ली
Thursday, November 20, 2008
राज ठाकरे और राजनीति का बदलता चरित्र
पहले राजनेता नहीं थे। शुरूआती होमोसेपियंस ने दुनिया में जहाँ चाहा, वहाँ अपना तम्बू गाड़ा और वहीं रहने लगे।फिर धीरे-धीरे शुरुआती राजनेता आए और देश बने। एक देश से दूसरे देश में जाना दूभर हो गया। किसी गढ़रिए ने बॉर्डर क्रॉस किया तो पुलिस पकड़ने लगी।फिर आए राज ठाकरे टाइप लोग… एक राज्य से दूसरे राज्य में आना-जाना मुश्किल हो गया। गए तो ठोंक-बजा दिए गए।अब लगता है कुछ दिनों में शहरों की दिक़्क़त आएगी… आगरा से मथुरा गए तो पिटाई हो जाएगी।फिर राजनीति और आगे बढ़ेगी… प्रांतवाद के बाद मुहल्लावाद भी आएगा। ये सोचकर कॉलेज के मेरे नॉट-सो-गुड-फ़्रेण्ड्स बहुत ख़ुश हैं। अगर मैं छिपीटोले गया, तो मेरा घण्टा बजाने का मौक़ा मिलेगा। मैं भी ख़ुश हूँ… मुझे भी मौक़ा मिलेगा।इसके बाद गलीवाद भी आएगा… सामने वाली गली में गए ग़लती से तो भरपूर प्रसाद देकर वापस भेजा जाएगा।फिर शायद राजनीति और विकसित होगी… चूँकि पड़ोसी मनसे का कार्यकर्ता होगा, तो उसके आंगन में गेंद उठाने जाना ख़तरे से खाली नहीं होगा।आपको भले ये ख़याली पुलाव लगे, लेकिन मुझे राजनीति और राजनेताओं पर पूरा भरोसा है… भविष्य में घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना भी ख़ामख़्वाह का ख़तरा मोल लेना होगा।इसके आगे समझ नहीं आ रहा कि राजनीति कैसे विकसित होगी… आप भी सोचिए
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