Thursday, November 20, 2008

राज ठाकरे और राजनीति का बदलता चरित्र

पहले राजनेता नहीं थे। शुरूआती होमोसेपियंस ने दुनिया में जहाँ चाहा, वहाँ अपना तम्बू गाड़ा और वहीं रहने लगे।फिर धीरे-धीरे शुरुआती राजनेता आए और देश बने। एक देश से दूसरे देश में जाना दूभर हो गया। किसी गढ़रिए ने बॉर्डर क्रॉस किया तो पुलिस पकड़ने लगी।फिर आए राज ठाकरे टाइप लोग… एक राज्य से दूसरे राज्य में आना-जाना मुश्किल हो गया। गए तो ठोंक-बजा दिए गए।अब लगता है कुछ दिनों में शहरों की दिक़्क़त आएगी… आगरा से मथुरा गए तो पिटाई हो जाएगी।फिर राजनीति और आगे बढ़ेगी… प्रांतवाद के बाद मुहल्लावाद भी आएगा। ये सोचकर कॉलेज के मेरे नॉट-सो-गुड-फ़्रेण्ड्स बहुत ख़ुश हैं। अगर मैं छिपीटोले गया, तो मेरा घण्टा बजाने का मौक़ा मिलेगा। मैं भी ख़ुश हूँ… मुझे भी मौक़ा मिलेगा।इसके बाद गलीवाद भी आएगा… सामने वाली गली में गए ग़लती से तो भरपूर प्रसाद देकर वापस भेजा जाएगा।फिर शायद राजनीति और विकसित होगी… चूँकि पड़ोसी मनसे का कार्यकर्ता होगा, तो उसके आंगन में गेंद उठाने जाना ख़तरे से खाली नहीं होगा।आपको भले ये ख़याली पुलाव लगे, लेकिन मुझे राजनीति और राजनेताओं पर पूरा भरोसा है… भविष्य में घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना भी ख़ामख़्वाह का ख़तरा मोल लेना होगा।इसके आगे समझ नहीं आ रहा कि राजनीति कैसे विकसित होगी… आप भी सोचिए

Monday, September 15, 2008

तुम यहीं हो... तुम मेरे पास हो

तुम्हारी कब्र पर मैं, फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया....

मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकती
तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर, जिसने उड़ाई थी वो झूठा था...
वो तुम कब थी...कोई सूखा हुआ पत्ता ..हवा में गिर के टूटा था.

मेरी आंखे तुम्हारे मंजरो में क़ैद है अब तक..
मैं जो भी देखता हूं...सोचता हूं
वो वही है..जो तुम्हारी नेकनामी,और बदनामी की दुनिया थी

कहीं कुछ भी नहीं बदला..
अब भी तुम्हारे हांथ मेरी उंगलियों मे सांस लेते हैं.
में जब भी लिखने के लिए जब भी कागज़ कलम उठाता हूं
तुम्हें बैठा हुआ अपनी कुर्सी में मैं पाता हूं


बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है
मेरी आवाज़ में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है
मेरी बीमारियों में तुम,मेरी लाचारियों में तुम

तुम्हारी कब्र प जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है
तुम्हारी कब्र पर मैं दफ़न, तुम मुझमें ज़िंदा हो
कभी फुरसत मिले तो फ़ातहा पढ़ने चले आना.......

निदा फ़ाजली..

बहुत बुरा लगता है मुझे...

मुझे बहुत बुरा लगता है जब….

· जब कभी कश्मीर मे कोई बेगुनाह मरता है।
· कांग्रेसी राहुल सोनियां की चापलूसी करते हैं।
· जब बीजेपी लीडरशिप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ़्तरों के चक्कर लगाते हैं।
· जब विश्व हिन्दू परिषद वाले आग उगलते हैं।
· जब नेता ईमानदारी पर भाषण देते हैं।
· जब अंगूठाटेक मिनिस्टर पढे लिखे लोगों के भविष्य का फैसला करते है
· जब गरीब अदालत के चक्कर लगा लगा कर फैसले के इन्तजार मे दम तोड़ देता है।
· जब उमा भारती अपना मुँह खोलती है।
· जब मैकडोनाल्ड और पिजा हट वाले बचा हुआ खाना कूड़े मे फ़ेंक देते है, लेकिन सड़क पर सो रहा रघु रोजाना की तरह भूखा रह जाता है।
· लोग क्रिकेट खिलाडियों पर राजनीति करते हैं।
· लोग दहेज प्रथा पर भाषण देते है लेकिन अपने बेटे की शादी मे सब भूल जाते हैं।
· लोग लड़की पैदा होने पर खुशी की जगह गम मनाते हैं।
· नेता/मिनिस्टर अपनी तुच्छ राजनीति के लिये अदालत की अवहेलना करते हैं।
· जब अपराधी राजनेता बनते हैं।
· जब सरकारी नौकरी मे काबिल को दरकिनार कर, आरक्षण के नाम पर नाकाबिल व्यक्ति को रखा जाता है।
· जब सरकार टैक्स की चोरी का रोना रोती है।
· जब पूजा कीर्तन के नाम पर रात रातभर लाउडस्पीकर लगाकर शोर मचाया जाता है।

लिस्ट तो बहुत लम्बी है, कहाँ तक बतायी जाय…