Wednesday, July 17, 2013

बच्चों की मौत पर राजनीति


बिहार में अब राजनीति सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, सरकारी भ्रष्टाचार का खाना खाकर 22 बच्चों की मौत हो गईलेकिन शर्मनाक बात ये है कि राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप मढ रहे हैं, सत्ता पक्ष के नेता बजाय इसे अपनी गलती, अपने अफसरों की गलती मानने की बजाय राजनैतिक षड़यंत्र का आरोप लगा रहे हैं...विकासपुरूष का दावा करने वाले नीतीशकुमार ने छपरा तक जाने की जहमत नहूीं उठाई, शायद उन्हें लगा हो, कि ये इतनी बड़ी घटना नहीं है...लेकिन उनके मंत्रियों को देखिए, बच्चों की मौत का अफसोस उन्हें नहीं है, उन्हें डर इस बात का है कि कहीं उनकी कुर्सी ना चली जाए..

बच्चों की मौत को 2 लाख रूपये के मुआवजे में तौलने की कोशिश हो रही है, शायद विकासपुरूष नीतीश कुमार जानते हैं इस देश की जनता को...कि इस देश के लोगों को भूलने की आदत है, अभी हाल में ही बोधगया ब्लास्ट का मामला अब धीरे धीरे लोगों के जहन से उतरने लगा है, इसी तरह आज नहीं तो कल, नहीं तो परसो बच्चों की मौत का मामला भी लोग भूल जाएंगे,

एक बात साफ है कि इन नेताओं को चाहे वो किसी भी पार्टी के हों,आम आदमी की परवाह नहीं है,आम आदमी उन्हें चुनाव के दौरान याद आता है, आम आदमी नेताओं के लिए महज वोट से ज्यादा कुछ नहीं है, आज 22 बच्चे मरे हैं, कल 222 मारे जाएंगे...सवा करोड़ वाले इस देश में सौ दौ लौग मर भी जाते हैं तो नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता..

आम आदमी की मौत पर मातम नहीं मनाया जाता, ये कुर्सी धारी लोग भली भाति जानते हैं...

प्रमोद पाण्डेय...

Tuesday, July 16, 2013

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तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं....

मोदी पर कांग्रेस के बयानों को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने कुत्ते की दुम में पैर रख दिया हो, भाई इन लोगों को प्रॉब्लम क्या है, मोदी जहां जाते हैं वहां विकास की बात करते हैं , गुजरात की बात करते हैं, लेकिन जिस अंदाज से मोदी बढ़ रहे हैं उसे देखकर कांग्रेस को लगने लगा है कि आने वाले चुनावों में उनका सफाया होना तया है।  पिछले दिनों मोदी का  कुत्ते के बच्चे पर दिया बयान पर काफी बवाल मचा, लेकिन बवाल मचाने वाले खुद ही जानते थे कि उनके पास विरोध करने का कोई और चारा नहीं है, मोदी ने किसी के लिए अपनी संवेदना जताई थी, उन्होनें कहा, कि अगर गाड़ी के नीचे कोई कुत्ता के बच्चा भी दब जाता है तो उन्हें दुख होता है, क्या आपको दुख नहीं होगा अगर ऐसा हो जाए...शायद कांग्रेस वालों को नहीं होगा..क्योकि इन लोगों ने आम इंसान की जिंदगी कुत्ते से भी बदतर बना दी है...महंगाई की मार से जिस तरह आम आदमी मर रहा है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि इस सरकार को आम आदमी के लिए कोई दुख नहीं,  ऐसे लोग आम आदमी के दुख के बारे में क्या सोचेंगे, और महसूस करेंगे जो एक परिवार के चमचागिरी में पूरा दिन गुजारते हैं...इन लोगों का वास्ता कभी जमीनी हकीकत से नहीं होता...ऐसे में अगर कोई गरीबों की बात करता है, कोई किसी का भ्रष्टाचार उजागर करता है, तो जाहिर है उनको मिर्ची लगनी स्वाभाविक है............

आज काफी दिनों बाद कुछ लिखने का मन कर रहा है... करीब तीन साल बाद अपने ब्लॉग को फिर से जिंदा करने का मन कर रहा है.. 

Friday, February 13, 2009

अभी नहीं तो कभी नहीं......

मुंबई आतंकी हमले में मासूम निर्दोषों को और सैनिकों को हम खो चुके हैं...
अब तो करलो बुद्धि मित्र ठिकाने परमुंबई भी रक्खी हैं आज निशाने परसौ-सौ लोगों को खोकर भी खामोशीकब टूटेगी सिंघासन की बेहोशी
अंधे लालच का सिन्धु भरके चित मेंध्रतराष्ट्र हैं मौन स्वयं-सूत के हित मेंवरना वो खुनी पंजे तुड़वा देतेअब तक .अफजल पे कुत्ते छुड़वा देते
जो ये कहते हैं भारत के रक्षक हैंवो ही अफजल जैसों के संरक्षक हैंबेशक सरे भारत का सर झुक जायेउनकी कोशिश हैं ये फंसी रुक जाये
निर्णय लेना होगा अब सरकारों कोपहले फांसी होगी इन गद्दारों को
एक बार फिर दहते स्वर में इन्कलाब गाना होगाफांसी का तख्ता जेलों से संसद तक लाना होगा.
प्रमोद...

प्रमोद...

Thursday, November 20, 2008

राज ठाकरे और राजनीति का बदलता चरित्र

पहले राजनेता नहीं थे। शुरूआती होमोसेपियंस ने दुनिया में जहाँ चाहा, वहाँ अपना तम्बू गाड़ा और वहीं रहने लगे।फिर धीरे-धीरे शुरुआती राजनेता आए और देश बने। एक देश से दूसरे देश में जाना दूभर हो गया। किसी गढ़रिए ने बॉर्डर क्रॉस किया तो पुलिस पकड़ने लगी।फिर आए राज ठाकरे टाइप लोग… एक राज्य से दूसरे राज्य में आना-जाना मुश्किल हो गया। गए तो ठोंक-बजा दिए गए।अब लगता है कुछ दिनों में शहरों की दिक़्क़त आएगी… आगरा से मथुरा गए तो पिटाई हो जाएगी।फिर राजनीति और आगे बढ़ेगी… प्रांतवाद के बाद मुहल्लावाद भी आएगा। ये सोचकर कॉलेज के मेरे नॉट-सो-गुड-फ़्रेण्ड्स बहुत ख़ुश हैं। अगर मैं छिपीटोले गया, तो मेरा घण्टा बजाने का मौक़ा मिलेगा। मैं भी ख़ुश हूँ… मुझे भी मौक़ा मिलेगा।इसके बाद गलीवाद भी आएगा… सामने वाली गली में गए ग़लती से तो भरपूर प्रसाद देकर वापस भेजा जाएगा।फिर शायद राजनीति और विकसित होगी… चूँकि पड़ोसी मनसे का कार्यकर्ता होगा, तो उसके आंगन में गेंद उठाने जाना ख़तरे से खाली नहीं होगा।आपको भले ये ख़याली पुलाव लगे, लेकिन मुझे राजनीति और राजनेताओं पर पूरा भरोसा है… भविष्य में घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना भी ख़ामख़्वाह का ख़तरा मोल लेना होगा।इसके आगे समझ नहीं आ रहा कि राजनीति कैसे विकसित होगी… आप भी सोचिए

Monday, September 15, 2008

तुम यहीं हो... तुम मेरे पास हो

तुम्हारी कब्र पर मैं, फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया....

मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकती
तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर, जिसने उड़ाई थी वो झूठा था...
वो तुम कब थी...कोई सूखा हुआ पत्ता ..हवा में गिर के टूटा था.

मेरी आंखे तुम्हारे मंजरो में क़ैद है अब तक..
मैं जो भी देखता हूं...सोचता हूं
वो वही है..जो तुम्हारी नेकनामी,और बदनामी की दुनिया थी

कहीं कुछ भी नहीं बदला..
अब भी तुम्हारे हांथ मेरी उंगलियों मे सांस लेते हैं.
में जब भी लिखने के लिए जब भी कागज़ कलम उठाता हूं
तुम्हें बैठा हुआ अपनी कुर्सी में मैं पाता हूं


बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है
मेरी आवाज़ में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है
मेरी बीमारियों में तुम,मेरी लाचारियों में तुम

तुम्हारी कब्र प जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है
तुम्हारी कब्र पर मैं दफ़न, तुम मुझमें ज़िंदा हो
कभी फुरसत मिले तो फ़ातहा पढ़ने चले आना.......

निदा फ़ाजली..

बहुत बुरा लगता है मुझे...

मुझे बहुत बुरा लगता है जब….

· जब कभी कश्मीर मे कोई बेगुनाह मरता है।
· कांग्रेसी राहुल सोनियां की चापलूसी करते हैं।
· जब बीजेपी लीडरशिप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दफ़्तरों के चक्कर लगाते हैं।
· जब विश्व हिन्दू परिषद वाले आग उगलते हैं।
· जब नेता ईमानदारी पर भाषण देते हैं।
· जब अंगूठाटेक मिनिस्टर पढे लिखे लोगों के भविष्य का फैसला करते है
· जब गरीब अदालत के चक्कर लगा लगा कर फैसले के इन्तजार मे दम तोड़ देता है।
· जब उमा भारती अपना मुँह खोलती है।
· जब मैकडोनाल्ड और पिजा हट वाले बचा हुआ खाना कूड़े मे फ़ेंक देते है, लेकिन सड़क पर सो रहा रघु रोजाना की तरह भूखा रह जाता है।
· लोग क्रिकेट खिलाडियों पर राजनीति करते हैं।
· लोग दहेज प्रथा पर भाषण देते है लेकिन अपने बेटे की शादी मे सब भूल जाते हैं।
· लोग लड़की पैदा होने पर खुशी की जगह गम मनाते हैं।
· नेता/मिनिस्टर अपनी तुच्छ राजनीति के लिये अदालत की अवहेलना करते हैं।
· जब अपराधी राजनेता बनते हैं।
· जब सरकारी नौकरी मे काबिल को दरकिनार कर, आरक्षण के नाम पर नाकाबिल व्यक्ति को रखा जाता है।
· जब सरकार टैक्स की चोरी का रोना रोती है।
· जब पूजा कीर्तन के नाम पर रात रातभर लाउडस्पीकर लगाकर शोर मचाया जाता है।

लिस्ट तो बहुत लम्बी है, कहाँ तक बतायी जाय…